भारतेंदु हरिश्चंद्र: आधुनिक हिंदी साहित्य के युगप्रवर्तक

भारतेन्दु हरिश्चंद्र (1850-1885) हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अमूल्य रत्न हैं। उन्हें “आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक” कहा जाता है। उनके जीवनकाल में साहित्य, पत्रकारिता, नाटक और कविताओं के क्षेत्र में उन्होंने अप्रतिम योगदान दिया। उनके लेखन में राष्ट्रीयता, सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक चेतना के गहरे भाव दृष्टिगोचर होते हैं।


भारतेंदु हरिश्चंद्र का परिचय

विवरणजानकारी
पूरा नामभारतेंदु हरिश्चंद्र
जन्म तिथि9 सितंबर 1850
जन्म स्थानवाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु तिथि6 जनवरी 1885
पितागोपाल चंद्र (गिरधर दास, कवि)
प्रमुख उपनामआधुनिक हिंदी साहित्य के जनक
कार्य क्षेत्रकविता, नाटक, निबंध, पत्रकारिता

साहित्यिक परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने खड़ी बोली हिंदी को साहित्य और गद्य की भाषा के रूप में स्थापित किया। उनकी रचनाओं में सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का सजीव चित्रण है। उन्होंने नाटक, कविता, निबंध, पत्रकारिता, यात्रा वृतांत, और आत्मकथा जैसी विभिन्न विधाओं में काम किया।


प्रमुख कृतियाँ और प्रकाशन वर्ष

1. मौलिक नाटक

नाटक का नामप्रकाशन वर्षवर्ण्य विषय
अंधेर नगरी1881प्रशासन और सामाजिक भ्रष्टाचार पर व्यंग्य
भारत दुर्दशा1875देशभक्ति और ब्रिटिश शासन का विरोध
सत्य हरिश्चंद्र1876सत्य, धर्म और पौराणिक कथाओं का चित्रण

2. अनूदित नाट्य रचनाएँ

नामप्रकाशन वर्षमूल स्रोत
विद्यासुंदर1875बंगाली साहित्य
नील देवी1876संस्कृत नाटक

3. निबंध संग्रह

नामप्रकाशन वर्षवर्ण्य विषय
नाटक1873नाट्यकला के सिद्धांत
भारतवर्षीय उत्सव1877भारतीय त्योहारों का महत्व

4. काव्यकृतियाँ

काव्य का नामप्रकाशन वर्षवर्ण्य विषय
भारत दुर्दशा1875देशभक्ति और समाज सुधार
प्रेम फुलवारी1877प्रेम और मानवीय संवेदनाएँ

5. कहानी और यात्रा वृतांत

कहानी/यात्रा वृतांतप्रकाशन वर्षवर्ण्य विषय
बनारस यात्रा1880धार्मिक और सांस्कृतिक विवरण

6. आत्मकथा और उपन्यास

नामप्रकाशन वर्षवर्ण्य विषय
आत्मकथा (अपूर्ण)1883आत्मनिरीक्षण और जीवन अनुभव

भाषा, शैली, रस, छंद और अलंकार

पहलूविशेषता
भाषाखड़ी बोली हिंदी, तत्सम और तद्भव शब्दों का समावेश।
शैलीव्यंग्यात्मक, भावपूर्ण और सरल।
रसप्रमुखतः वीर रस, करुण रस और हास्य रस।
छंददोहा, चौपाई, कुंडलिया।
अलंकारअनुप्रास, उपमा, रूपक।

महत्वपूर्ण कार्य

  1. पत्रकारिता में योगदान:
    • कविवचन सुधा (1873): मासिक पत्रिका जो हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के विकास में मील का पत्थर साबित हुई।
    • हरिश्चंद्र चंद्रिका (1874): सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर प्रकाश डालने वाली पत्रिका।
  2. नाटक साहित्य का विकास:
    • भारतेन्दु ने आधुनिक हिंदी नाटक को एक नई दिशा दी। उनके नाटकों में सामाजिक कुरीतियों और भ्रष्टाचार के प्रति जागरूकता है।
  3. सामाजिक सुधार:
    • उन्होंने महिला शिक्षा, स्वदेशी आंदोलन और सामाजिक जागृति के लिए रचनात्मक प्रयास किए।

संदर्भ सूची

  1. हिंदी साहित्य का इतिहास – आचार्य रामचंद्र शुक्ल।
  2. हिंदी नाटक और भारतेन्दु – हजारीप्रसाद द्विवेदी।
  3. भारतेन्दु साहित्य संदर्भ कोश – डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी।
  4. हिंदी पत्रकारिता का इतिहास – विष्णु प्रभाकर।

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